उपासना शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है ।
उप+आसन ।
उप का अर्थ समीप है तथा आसन का अर्थ बैठना है ।
अर्थात अपने ईष्टदेवता के समीप बैठना ही उपासना है ।
आप प्रतिदिन अपने अपने ईष्टदेव कि प्रसन्नता के लिये उनके चालिसा या स्त्रोत का पाठ करते हो, मन्दिर जाते हो,
सप्ताह मे एक या दो दिन उनकि प्रसन्नता के लिये व्रत उपवास रखते हो ।
ये आपकि उपासना ही है । जितना समय आपका मन आपके ईष्टदेव के ध्यान, चिंतन, मनन मे बीतता है.. उतना समय आप आपके ईष्टदेव के बिल्कुल समीप रहते हो ।
संसार मे एक नियम है कि आप जिसकि अधिक संगति करोगे,उसके गुण देर सवेर आपमे स्वतः ही आने लगेंगे । उसी के जेसे आपके विचार ओर कर्म बनते चले जायेंगे ।
एक सच्चा उपासक अपने ईष्टदेव कि अधिक संगति करता है.. उसका अधिक समय ईष्टदेव के ध्यान, चिंतन, मनन मे ही बीतता है । वो संसार का कोइ भी कर्म करता रहे पर उसका मन भगवान मे लगा होता है ।
""कर से करम करहुँ बिधि नाना । मन राखहुँ जहँ कृपा निधाना ।।""
उपासक कि इस संगति के कारण उसके भीतर उसके ईष्टदेव का चरित्र नही चाहते हुये भी 100% उभरता है । ईष्टदेव के देवीय गुण उसके भीतर प्रकट होने लगते है ।
जेसे कोइ भगवान श्री कृष्ण कि उपासना करता है तो उसका स्वभाव धीरे धीरे भगवान श्री कृष्ण जेसा बनने लगेगा, कोइ श्री राम कि उपासना करता है तो उसके भीतर श्री राम का चरित्र प्रकट होने लगेगा । कोइ हनुमान जी कि उपासना करता है तो उसके भीतर हनुमान जी के गुण प्रकट होने लगेंगे ।
किन्तु एसा तब ही होगा जब आपके ईष्टदेव आप पर प्रसन्न हो ।
अपने ईष्ट के स्वरूप में रंग जाना ही सच्ची उपासना है ।
भारत भूषण शर्मा
उप+आसन ।
उप का अर्थ समीप है तथा आसन का अर्थ बैठना है ।
अर्थात अपने ईष्टदेवता के समीप बैठना ही उपासना है ।
आप प्रतिदिन अपने अपने ईष्टदेव कि प्रसन्नता के लिये उनके चालिसा या स्त्रोत का पाठ करते हो, मन्दिर जाते हो,
सप्ताह मे एक या दो दिन उनकि प्रसन्नता के लिये व्रत उपवास रखते हो ।
ये आपकि उपासना ही है । जितना समय आपका मन आपके ईष्टदेव के ध्यान, चिंतन, मनन मे बीतता है.. उतना समय आप आपके ईष्टदेव के बिल्कुल समीप रहते हो ।
संसार मे एक नियम है कि आप जिसकि अधिक संगति करोगे,उसके गुण देर सवेर आपमे स्वतः ही आने लगेंगे । उसी के जेसे आपके विचार ओर कर्म बनते चले जायेंगे ।
एक सच्चा उपासक अपने ईष्टदेव कि अधिक संगति करता है.. उसका अधिक समय ईष्टदेव के ध्यान, चिंतन, मनन मे ही बीतता है । वो संसार का कोइ भी कर्म करता रहे पर उसका मन भगवान मे लगा होता है ।
""कर से करम करहुँ बिधि नाना । मन राखहुँ जहँ कृपा निधाना ।।""
उपासक कि इस संगति के कारण उसके भीतर उसके ईष्टदेव का चरित्र नही चाहते हुये भी 100% उभरता है । ईष्टदेव के देवीय गुण उसके भीतर प्रकट होने लगते है ।
जेसे कोइ भगवान श्री कृष्ण कि उपासना करता है तो उसका स्वभाव धीरे धीरे भगवान श्री कृष्ण जेसा बनने लगेगा, कोइ श्री राम कि उपासना करता है तो उसके भीतर श्री राम का चरित्र प्रकट होने लगेगा । कोइ हनुमान जी कि उपासना करता है तो उसके भीतर हनुमान जी के गुण प्रकट होने लगेंगे ।
किन्तु एसा तब ही होगा जब आपके ईष्टदेव आप पर प्रसन्न हो ।
अपने ईष्ट के स्वरूप में रंग जाना ही सच्ची उपासना है ।
भारत भूषण शर्मा
2 Comments
Hari bol bahut sundar kaha prabhuji..jay shree hari
ReplyDeleteWaahh...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ��