आयु: कर्म च वित्तं च, विद्या निधनमेव च।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते, गर्भस्थस्यैव देहिन:।।
आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु ये पाँच बातें गर्भ मे ही निश्चित हो जाती है।
जब शिशु माता के गर्भ में होता है उसी समय उसका प्रारब्ध निर्धारित हो जाता है। पूर्व जन्म में किए कर्मों के आधार पर ही आत्मा को नया शरीर प्राप्त होता है। शिशु के जन्म से पहले ही परमात्मा निर्धारित कर देते है कि वह कितने वर्ष जियेगा? इंसान की मृत्यु कैसे होगी? उसके कर्म क्या -क्या होंगे? शिशु के पास धन कितना रहेगा और कैसे कमाएगा? शिशु की शिक्षा कैसी रहेगी ?

ज्योतिष शास्त्र आपको आपके भाग्य मे लिखे हुये विधि के लेख को बताने वाला शास्त्र है ।