क्या रत्न काम करते है? , करते है तो किस प्रकार करते है ? रत्नों का वैज्ञानिक आधार क्या है?

***रत्नो का वैज्ञानिक आधार तथा पन्ना रत्न
का परिचय***
आज के समय में कुछ लोग
रत्नो को व्यर्थ बताते है,कहते है कि रत्नो का कोई
वैज्ञानिक
आधार
नहीं है, लेकिन रत्न जीवन में उसी प्रकार काम करता है
जिस
प्रकार एक बहुत बडी इमारत पर लगा एक अर्थ
का एंटीना काम करता है . जब आसमान में
बिजली तड़कती है
तो वो पानी के माध्यम से अर्थ लेकर ईमारत
को गिराने कि क्षमता रखती है लेकिन उस समय
वो एंटीना ही इमारत को बिजली के खतरे से सुरक्षित
रखता है ।
इसी प्रकार जब हमारे शरीर में अग्नि तत्व का घर्षण
होता है
तो ये रत्न या धातु ही उसके प्रभाव से हमें बचाते है.
महर्षि चरक
ने सबसे पहले आयुर्वेद में इन रत्नो का प्रयोग भस्म
बनाने के लिए
किया था । आज भी मरीज को रत्नो और धातुओ की भस्म
जैसे स्वर्ण
भस्म ,चाँदी की भस्म, मूंगे की भस्म दी जाती है. रत्न
उसी प्रकार काम करता है जिस प्रकार एक लेंस को सूर्य
की रश्मियों के साथ केंद्रित करते है तो वह लेंस आग
लगा देता है .
उसी प्रकार जब जब भी आपके द्वारा पहना हुआ रत्न
सूर्य
को केंद्रित होगा तो आपके शरीर में
ऊर्जा बढ़ा देगा ।
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक ग्रह का एक विशेष रत्न
बताया गया है ।
इन रत्नों में ग्रहो कि रश्मियो को पकडने
कि शक्ति होती है ।
अँगुठी में रत्न को इस प्रकार जडित किया जाता है
कि वह शरीर को स्पर्श करता रहे ।
रत्न जिस ग्रह से सम्बन्धित होता है उसी ग्रह
कि किरणो को पकडकर मानव शरीर में प्रवेश
करवा देता है ।ओर मानव को उस ग्रह से मिलने वाले शुभ
फलो में अधिकता प्राप्त होती है ।
आजकल राशि के अनुसार रत्न धारण करने का प्रचलन
बहुत अधिक है । लेकिन राशि के अनुसार रत्न धारण
करना 100% गलत है ।
रत्न किसी अच्छे ओर
ज्ञानी ज्योतिषी को कुण्डली दिखाकर ही धारण
करना चाहिये । लग्नेश ओर त्रिकोण के स्वामी का रत्न
बहुत लाभदायक होता है, किन्तु अगर लग्न ओर त्रिकोण
भाव के स्वामी त्रिक भाव मे गये हो या मारक स्थान मे
बैठे हो या पाप ग्रहो से पीडित हो तो भूलकर
भी एसी परिस्थिति में रत्न धारण नही करना चाहिये
। कुण्डली के अनुसार जो ग्रह आपके लिये अत्यंत शुभ
हो उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिये ।
जेसे मंदिर में पत्थर कि मूर्ति को स्थापित करने के लिये
पहले उसमे प्राण प्रतिष्ठा कि जाती है, ठीक वेसे
ही रत्न को धारण करने से पूर्व रत्न
कि पूजा तथा प्राण प्रतिष्ठा अति आवश्यक होती है ।
रत्न को विशेष मुहुर्त मे धारण किया जाता है ।
पन्ना :-यह बुध का रत्न है । बुध मिथुन ओर कन्या इन
दो राशियो का स्वामी है ।
कुण्डली में बुध जब शुभ फलदायी हो, या बुध किसी अच्छे
स्थान पर बैठकर अस्त या शक्तिहीन हो, तब
पन्ना धारण करने से बुध के शुभ फलो मे वृद्धि होती है ।
पन्ना रत्न अति प्राचीन
बहुप्रचलित व मूल्यवान है | मूल्यवान रत्नों में
पन्ना तीसरे नंबर पर आता है ।
पन्ना अति सुन्दर
हरी मखमली घास की तरह प्रियदर्शी हरित वर्ण
का होता है | यह गहरे से हल्के हरे रंग का होता है।
पन्ना: रंग भेद
पन्ना मुख्यतः पांच रंगों में पाया जाता है
1. मयूरपंख के रंग के समान
2. हरे पानी के रंग के समान
3. सरसों के पुष्प के समान
4. हल्का सिहुन्वा पुष्प के समान
5. तोते के पंख के समान हरा रंग
पन्ना स्पर्श करने में स्निग्ध,
हरा गहरा रंग अन्य पत्थरों कि अपेक्षा मृदु होता है ।
जो पन्ना हरित वर्ण का भड़कदार
चिकनापन लिए हुए पारदर्शक तथा उज्जवल किरणों से
युक्त होता है तथा पानीदार व बिन्दु रहित
होता है वह श्रेष्ठ पन्ना कहलाता है ।
असली पन्ना कि पहचान:-
असली व नकली पन्नों की पहचान
1. असली पन्ना को लकड़ी पर रगड़ने से इसमें चमक आ
जाती है ।
2. कांच के गिलास में पानी भर कर
असली पन्ना को इस गिलास में डाल देने से
पानी से हरे रंग की किरणे निकलती है ।
3. पन्ना सूर्य के सामने करने पर पन्ना मे से हरे रंग
की छाया निकलती है ।
4. असली पन्ना पर पानी की बूँद डालने से
पानी की बूँद यथावत रहती है ।
5. असली पन्ना में रेशे नहीं पाए जाते है ।
पन्ना का माप व धारण करने के लिये 3 रत्ती से
छोटा पन्ना कम प्रभावशाली, 3 से 6
रत्ती का पन्ना मध्यम प्रभावशाली, व 6 रत्ती से
बड़ा पन्ना अधिक प्रभावशाली माना गया है |
पन्ना को सोने के अँगूठी में धारण करना चाहिए |
इस का प्रभाव पन्ना को अँगूठी में जड़वाने के दिन से
3 वर्ष तक रहता है | इस समय के बाद
नया पन्ना धारण करना चाहिए ।
धारण करने कि विधि:-
बुधवार के दिन मिथुन
या कन्या राशि की प्रबलता पर अथवा आश्लेषा,
ज्येष्ठा अथवा रेवती नक्षत्र व बुध के या सूर्य के
नवमांश में बुध हो तो प्रातः सूर्योदय से लेकर दस बजे
के मध्य पन्ना जड़वा कर सोने की अँगूठी तैयार
करवानी चाहिए | अँगूठी इस प्रकार
की बनी होनी चाहिए के पन्ना का निचला ताल
अँगुली की त्वचा को स्पर्श करता रहे ।
पन्ना के लाभ:- पन्ना रत्न धारण करने पर
बुद्धि का विकास होता है ।व्यवसाय मे लाभ होता है
। व्यक्ति कि निर्णय लेने कि क्षमता में वृद्धि होती है
। तथा कुण्डली में बुध जिस भाव का स्वामी हो उस भाव
के फलो में वृद्धि होती है ।
भारत भूषण शर्मा