मासिक धर्म ओर चन्द्र का संबंध
प्रकृति ने मनुष्यों मे दो प्रजाति का सृजन किया है :--
1.पुरुष
2.स्त्री
पुरुष कि प्रकृति "सूर्य" से संचालित होती है, ओर स्त्री कि प्रकृति चन्द्र से संचालित होती है।
सूर्य से संचालित होने के कारण ही पुरुष के स्वभाव ओर शरीर मे थोडी कठोरता ओर क्रोध होता है, क्योंकि सूर्य एक "गर्म" ग्रह है।
वहीं चन्द्र से संचालित होने के कारण स्त्रियों के शरीर ओर स्वभाव मे कोमलता होती है, पुरूषों कि तुलना मे स्त्रियाँ बहुत अधिक भावुक होती है, क्यों कि "चन्द्र" एक ठण्डा ग्रह है।
चन्द्र को 12 राशियों के भ्रमण मे 1माह का समय लगता है। स्त्रियों के मासिक धर्म का समय भी 1माह ही होता है।
जैसे-जैसे चन्द्रमा पूर्णिमा कि ओर बढता है वैसे वैसे स्त्रियों का शरीर ओर मन प्रसन्न रहता है, ओर जैसे-जैसे चन्द्र घटते हुये क्रम मे अमावस्या कि ओर बढता है वैसे वैसे स्त्रियों के मन मे उदासी ओर शरीर मे थोडा कष्ट बढता जाता है।
अमावस्या के आसपास ही स्त्रियों के मासिक धर्म का समय होता है। यह समय अमावस्या के 3-4 दिन पूर्व अथवा 3-4 दिन बाद तक हो सकता है।
अमावस्या निकल जाने के बाद फिर से स्त्रियों का शरीर ओर मन स्वस्थ होता चला जाता है।
प्रकृति कि ओर से मासिक धर्म का समय अमावस्या के आसपास का ही बनाया गया है, इस पर आप एक रिसर्च करके देख सकते है।
जब प्रथम बार से मासिक चक्र कि शुरुआत होती है, उस समय को आप चेक करे। बाद मे धीरे धीरे यह समय अनियमित खानपान ओर दिनचर्या कि वजह से डिस्टर्ब हो सकता है।
जिन स्त्रियों के शरीर का मासिक चक्र अमावस्या के आसपास का होता है, उनका शरीर स्वस्थ ओर निरोगी रहता है।
इसके विपरीत अनियमित दिनचर्या ओर खान-पान कि वजह से जिनका यह समय क्रम बिगड चुका है, जिनका यह समय पूर्णिमा के आस पास पहुंच चुका है, उनका शरीर अनेक रोगों का घर हो जाता है।
यही एक कारण है कि स्त्रियों के लिये व्रत त्यौहार मे चन्द्र दर्शन, चन्द्र को अर्घ्य देना, चन्द्र से संबंधित 16 सोमवार का व्रत करना आदि हमारे सनातन धर्म मे बताया गया है।
भारतभूषण शर्मा
2 Comments
सरल व सारगर्भित जानकारी के लिए हृदयतल की गहराई से आभार।
ReplyDeleteThanks for explaining scientific and philosophical angle of this fact
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