पूर्व जन्म के कर्मानुसार इस जन्म मे घटने वाली घटनाये पहले से तय होती है, इसीलिये ज्योतिष शास्त्र कि सहायता से भविष्य कि घटनाओं का अनुमान पहले से लगाया जा सकता है। इस संसार का प्रत्येक प्राणी अपने पिछले जन्म के कर्मों के बंधन से बंधा होता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य कर्म करने मे स्वतन्त्र कहाँ हुआ ?

जल मे डूबते हुये प्राणी को हाथ-पैर मारने कि स्वतंत्रता है, लेकिन वह बच पायेगा या नही यह विधि (ईश्वर) के हाथ मे होता है ।

धन कमाने के लिये परिश्रम करने कि स्वतंत्रता है, लेकिन आप कितना कमा पाओगे ,यह विधि(ईश्वर) के हाथ मे होता है ।

आपको इस संसार मे हाथ-पैर मारने कि पूरी स्वतंत्रता है, लेकिन आपके हाथ-पैर मारने का परिणाम आपके पूर्व जन्म के कर्मों से बंधा होता है ।
इसीलिये भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता मे कर्म के फल कि इच्छा ना करने को कहा है।

1.कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। (भगवद्गीता)
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं।

2.हानि,लाभ,जीवन,मरण,यश,
अपयश विधि हाथ । (रामचरितमानस)

मनुष्य को छोड़कर इस संसार के सभी जीव 100% विधि के control मे ही जीते है ।

मनुष्य को भगवान ने थोडी सी बुद्धि ओर समझ देकर हाथ-पाँव मारने कि पूरी स्वतंत्रता दी है ।

अब प्रश्न यह उठता है कि इस थोडी सी बुद्धि ओर समझ  तथा हाथ-पैर मारने कि स्वतंत्रता का क्या लाभ ?

मनुष्य को चाहिये कि वह अपने कर्मजाल के बंधन से मुक्त होने का प्रयास करे । कर्म जाल के बंधन से मुक्त केवल वही हो सकता है, जिस पर स्वयं भगवान कृपा करे । अपने प्रयास से आज तक कोई मुक्त नही हुआ है । पर मनुष्य को पहले उनकी कृपा का पात्र बनना पडता है ।

अब प्रश्न उठता है कि भगवान कि कृपा का पात्र कैसे बन सकते है ?

भगवान ने इसका बहुत सरल उपाय बताया है:---
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।।""

जिसका मन निर्मल हो जाता है वह भगवान कि कृपा का पात्र बन जाता है । अतः अपने भीतर कि बुराइयों को बुद्धि कि सहायता से दूर करने मे मनुष्य स्वतंत्र है ।
भारतभूषण शर्मा