***केतु ग्रह का स्वभाव***
पौराणिक कथा के अनुसार केतु का न मुख है , न आँख है , न कान है , न जीभ है , न दाँत है ओर ना मस्तिष्क है ।
केतु को सिर्फ एक धड बताया गया है ।
अब जिस व्यक्ति के ना आँख हो ,ना कान हो, ना जीभ हो, ना नाक हो , ना सिर हो तो क्या वो संसार का आनंद ले पायेगा ?
नही ना ! क्यों कि जितने भी विकार काम ,क्रोध, लोभ, मोह , अहंकार यह सब आँख, जीभ, कान, नाक,मस्तिष्क से पैदा होते है ।
अरे भाई जब किसी को संसार दिखेगा ही नही, कुछ सुनाई देगा ही नही, किसी व्यंजन का स्वाद पता ही नही होगा, सुगंध- दुर्गन्ध का भेद पता ही नही होगा, तो उसके मन मे विषय वासना कैसे जन्म ले सकती है?
यही कारण है कि केतु को मोक्ष का कारक ग्रह बताया गया है,
केतु प्रधान व्यक्ति इस संसार से कटा हुआ रहता है ।
परमात्मा को केवल मन से, हृदय से देखा जा सकता है, तो केतु के पास हृदय है , ओर वो केवल भगवान से ही प्रीती रखता है , उसे इस दुनिया मे किसी ओर से कोई मतलब नही है।
यह तो हुई अध्यात्म कि बात , अब सांसारिक घटनाओं मे केतु महाराज क्या भूमिका अदा करते है यह मैं आपको बताता हुँ ।
जैसा कि आपने उपरोक्त पंक्तियों मे जाना कि केतु सिर्फ एक धड है , इससे ऊपर कि इन्द्रियाँ केतु मे नही है ।
अतः अशुभ केतु कि दशान्तर्दशा मे होने वाली घटनाये किसी को समझ मे नही आती है, जातक अत्यंत भ्रमित रहता है, जातक अगर बीमार हो जाये तो डॉक्टर रोग को नही पकड पाते है , रोग दूसरा हो रहा है ओर डाॅक्टर किसी दूसरे रोग कि दवा दे रहा है ।
परिवार के किसी आत्मीय सदस्य या किसी प्रिय रिश्तेदार कि मृत्यु हो जाना भी अशुभ केतु के समय मे होता है, जिससे व्यक्ति के मन मे संसार से दुःख ओर वैराग्य प्रकट होता है ।
2015 मे एक सज्जन मेरे संपर्क में आये थे, जिन्हे अशुभ केतु कि दशा चल रही थी, अतः मेने उन्हे ज्यादा विस्तार से नही बताया क्योंकि नकारात्मक घटना किसी को विस्तार से बताना उसे मानसिक तनाव मे डाल देती है , उन्हे सिर्फ इतना ही कहा कि समय अत्यंत खराब है, धन का नुकसान होगा, आपकी मानसिक स्थिति बिगड सकती है, तथा पत्नी को कोई रोग हो सकता है , अतः सावधान रहे ।
2016 मई मे अचानक उनकी पत्नी कि मृत्यु हो गई, यह उनके लिये अत्यंत बुरी घटना थी , ओर इसका प्रभाव जब तक केतु कि महादशा उनके ऊपर है तब तक उन पर बना रहेगा, वो इस दुःख से तब तक बाहर नही निकल पायेंगे ।
भूत- प्रेत , तंत्र मंत्र बाधा किसी को दिखाई नही देती है, अतः अशुभ केतु के समय मे जातक इनके चक्कर मे भी फँस जाता है ।
अतः भ्रमित होना , गुप्त रूप से घटनाये घटित होना , घटनाओं का समझ न आना , मानसिक स्थिति बिगड़ना , किसी अत्यंत करीबी रिश्तेदार या परिवार के किसी आत्मीय सदस्य कि अचानक मृत्यु हो जाना ,
यह सब अशुभ केतु के समय मे होते है ,
ओर शुभ केतु के समय मे भगवान से प्रीती बढती है, गूढ ज्ञान प्राप्त होता है, धन संपत्ति मे वृद्धि होती है, धार्मिक यात्राये होती है, मन मे वैराग्य जागता है , गूढ विद्या तथा ज्ञान को जानने वाले व्यक्तियों से संपर्क होता है ।
कई विद्वान केतु को धनु राशि , वृश्चिक राशि मे श्रेष्ठ मानते है, तथा वृष , मिथुन मे अशुभ मानते है , तो कई केतु को कुजवत् केतु कहकर मेष ओर वृश्चिक राशि मे इसे श्रेष्ठ बताते है , जबकि व्यवहार मे मुझे इनमे सत्यता नही मिली ।
मेने धनु के केतु के समय मे जातक को अत्यंत परेशान ओर दुखी पाया है, तथा मिथुन के केतु जिसमे इसे नीच माना जाता है, उस समय मे जातक को उन्नति करते देखा है ।
जन्मकुंडली मे राहु केतु को समझना थोडा कठिन कार्य है ।
भारतभूषण शर्मा
पौराणिक कथा के अनुसार केतु का न मुख है , न आँख है , न कान है , न जीभ है , न दाँत है ओर ना मस्तिष्क है ।
केतु को सिर्फ एक धड बताया गया है ।
अब जिस व्यक्ति के ना आँख हो ,ना कान हो, ना जीभ हो, ना नाक हो , ना सिर हो तो क्या वो संसार का आनंद ले पायेगा ?
नही ना ! क्यों कि जितने भी विकार काम ,क्रोध, लोभ, मोह , अहंकार यह सब आँख, जीभ, कान, नाक,मस्तिष्क से पैदा होते है ।
अरे भाई जब किसी को संसार दिखेगा ही नही, कुछ सुनाई देगा ही नही, किसी व्यंजन का स्वाद पता ही नही होगा, सुगंध- दुर्गन्ध का भेद पता ही नही होगा, तो उसके मन मे विषय वासना कैसे जन्म ले सकती है?
यही कारण है कि केतु को मोक्ष का कारक ग्रह बताया गया है,
केतु प्रधान व्यक्ति इस संसार से कटा हुआ रहता है ।
परमात्मा को केवल मन से, हृदय से देखा जा सकता है, तो केतु के पास हृदय है , ओर वो केवल भगवान से ही प्रीती रखता है , उसे इस दुनिया मे किसी ओर से कोई मतलब नही है।
यह तो हुई अध्यात्म कि बात , अब सांसारिक घटनाओं मे केतु महाराज क्या भूमिका अदा करते है यह मैं आपको बताता हुँ ।
जैसा कि आपने उपरोक्त पंक्तियों मे जाना कि केतु सिर्फ एक धड है , इससे ऊपर कि इन्द्रियाँ केतु मे नही है ।
अतः अशुभ केतु कि दशान्तर्दशा मे होने वाली घटनाये किसी को समझ मे नही आती है, जातक अत्यंत भ्रमित रहता है, जातक अगर बीमार हो जाये तो डॉक्टर रोग को नही पकड पाते है , रोग दूसरा हो रहा है ओर डाॅक्टर किसी दूसरे रोग कि दवा दे रहा है ।
परिवार के किसी आत्मीय सदस्य या किसी प्रिय रिश्तेदार कि मृत्यु हो जाना भी अशुभ केतु के समय मे होता है, जिससे व्यक्ति के मन मे संसार से दुःख ओर वैराग्य प्रकट होता है ।
2015 मे एक सज्जन मेरे संपर्क में आये थे, जिन्हे अशुभ केतु कि दशा चल रही थी, अतः मेने उन्हे ज्यादा विस्तार से नही बताया क्योंकि नकारात्मक घटना किसी को विस्तार से बताना उसे मानसिक तनाव मे डाल देती है , उन्हे सिर्फ इतना ही कहा कि समय अत्यंत खराब है, धन का नुकसान होगा, आपकी मानसिक स्थिति बिगड सकती है, तथा पत्नी को कोई रोग हो सकता है , अतः सावधान रहे ।
2016 मई मे अचानक उनकी पत्नी कि मृत्यु हो गई, यह उनके लिये अत्यंत बुरी घटना थी , ओर इसका प्रभाव जब तक केतु कि महादशा उनके ऊपर है तब तक उन पर बना रहेगा, वो इस दुःख से तब तक बाहर नही निकल पायेंगे ।
भूत- प्रेत , तंत्र मंत्र बाधा किसी को दिखाई नही देती है, अतः अशुभ केतु के समय मे जातक इनके चक्कर मे भी फँस जाता है ।
अतः भ्रमित होना , गुप्त रूप से घटनाये घटित होना , घटनाओं का समझ न आना , मानसिक स्थिति बिगड़ना , किसी अत्यंत करीबी रिश्तेदार या परिवार के किसी आत्मीय सदस्य कि अचानक मृत्यु हो जाना ,
यह सब अशुभ केतु के समय मे होते है ,
ओर शुभ केतु के समय मे भगवान से प्रीती बढती है, गूढ ज्ञान प्राप्त होता है, धन संपत्ति मे वृद्धि होती है, धार्मिक यात्राये होती है, मन मे वैराग्य जागता है , गूढ विद्या तथा ज्ञान को जानने वाले व्यक्तियों से संपर्क होता है ।
कई विद्वान केतु को धनु राशि , वृश्चिक राशि मे श्रेष्ठ मानते है, तथा वृष , मिथुन मे अशुभ मानते है , तो कई केतु को कुजवत् केतु कहकर मेष ओर वृश्चिक राशि मे इसे श्रेष्ठ बताते है , जबकि व्यवहार मे मुझे इनमे सत्यता नही मिली ।
मेने धनु के केतु के समय मे जातक को अत्यंत परेशान ओर दुखी पाया है, तथा मिथुन के केतु जिसमे इसे नीच माना जाता है, उस समय मे जातक को उन्नति करते देखा है ।
जन्मकुंडली मे राहु केतु को समझना थोडा कठिन कार्य है ।
भारतभूषण शर्मा
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