महिलाओं के स्वास्थ्य हानि का कारण ओर उपाय
***महिलाओ के स्वास्थ्य हानि का कारण ओर उपाय***
प्रायः देखने में आता है कि गाँव में निवास करने वाली महिलाओ कि अपेक्षा शहरो में निवास करने वाली महिलाये अधिक बीमार होती है.. शहरी महिलाओ को स्वास्थ्य से संबंधित कोइ ना कोइ परेशानी अवश्य होती है...
इसका कारण क्या है ?
पुरूषो कि अपेक्षा महिलाओ में ""पृथ्वि तत्व"" कम मात्रा में होता है.. इसी कारण पुरूषो का शरीर कठोर ओर महिलाओ का शरीर कोमल होता है ।
पुरूष किसी भी पीडा को सह सकता है.. भारी वजन उठा सकता है.. क्यो कि उसमे पृथ्वी तत्व अधिक है.. ।
जबकि महिलाओ मे जल तत्व अधिक होता है... इसी कारण वो बहुत भावुक प्रवृति कि होती है.. छोटी छोटी बात पर आँखो मे आसु आजाते है.. क्यो कि जल तत्व अधिक है । शरीर पर छोटी सी चोट को सहन करना भी उनके लिये बहुत कठिन है..।
गाँवो मे निवास करने वाली महिलाये खेतो में काम करती है.. मिट्टी से बर्तन माँजती है.. वो बराबर मिट्टी के सम्पर्क में रहती है..इसी कारण ग्रामीण महिलाओ के पृथ्वी तत्व मे वृद्धि होती रहती है.. वो अधिक समय तक बिना थके शारीरिक श्रम कर सकती है...
जब कि शहरी महिलाये मिट्टी ओर जमीन से अपने आपको बहुत दूर रखती है.. घर में भी चप्पल पहनकर घूमति है.. इस वजह से उनके पृथ्वी तत्व का सामंजस्य बिगडने लगता है.. ओर धीरे धीरे उनके शरीर में रोग स्थान बनाने लगते है.. चेहरे कि चमक समाप्त होने लगति है... ।
उपाय:-- रोगी महिलाओ को प्रतिदिन नंगे पेर जमीन पर कम से कम 1 किलोमीटर पैदल चलना चाहिये.. हरी घास में घूमना चाहिये..
अपने पैरो के तलुवे पर "" काली मिट्टी"" का लेप प्रतिदिन मेंहदी कि तरह करना चाहिये.. तथा लगभग 35-45 मिनट के बाद धो लेना चाहिये.. ।
मिट्टी ओर जमीन से बराबर संपर्क बनाये रखना चाहिये ।
रोगी महिलाओ को 1 माह के भीतर ही अपने स्वास्थ्य में लाभ महसूस होने लगेगा ।
भारत भूषण शर्मा
***महिलाओ के स्वास्थ्य हानि का कारण ओर उपाय***
प्रायः देखने में आता है कि गाँव में निवास करने वाली महिलाओ कि अपेक्षा शहरो में निवास करने वाली महिलाये अधिक बीमार होती है.. शहरी महिलाओ को स्वास्थ्य से संबंधित कोइ ना कोइ परेशानी अवश्य होती है...
इसका कारण क्या है ?
पुरूषो कि अपेक्षा महिलाओ में ""पृथ्वि तत्व"" कम मात्रा में होता है.. इसी कारण पुरूषो का शरीर कठोर ओर महिलाओ का शरीर कोमल होता है ।
पुरूष किसी भी पीडा को सह सकता है.. भारी वजन उठा सकता है.. क्यो कि उसमे पृथ्वी तत्व अधिक है.. ।
जबकि महिलाओ मे जल तत्व अधिक होता है... इसी कारण वो बहुत भावुक प्रवृति कि होती है.. छोटी छोटी बात पर आँखो मे आसु आजाते है.. क्यो कि जल तत्व अधिक है । शरीर पर छोटी सी चोट को सहन करना भी उनके लिये बहुत कठिन है..।
गाँवो मे निवास करने वाली महिलाये खेतो में काम करती है.. मिट्टी से बर्तन माँजती है.. वो बराबर मिट्टी के सम्पर्क में रहती है..इसी कारण ग्रामीण महिलाओ के पृथ्वी तत्व मे वृद्धि होती रहती है.. वो अधिक समय तक बिना थके शारीरिक श्रम कर सकती है...
जब कि शहरी महिलाये मिट्टी ओर जमीन से अपने आपको बहुत दूर रखती है.. घर में भी चप्पल पहनकर घूमति है.. इस वजह से उनके पृथ्वी तत्व का सामंजस्य बिगडने लगता है.. ओर धीरे धीरे उनके शरीर में रोग स्थान बनाने लगते है.. चेहरे कि चमक समाप्त होने लगति है... ।
उपाय:-- रोगी महिलाओ को प्रतिदिन नंगे पेर जमीन पर कम से कम 1 किलोमीटर पैदल चलना चाहिये.. हरी घास में घूमना चाहिये..
अपने पैरो के तलुवे पर "" काली मिट्टी"" का लेप प्रतिदिन मेंहदी कि तरह करना चाहिये.. तथा लगभग 35-45 मिनट के बाद धो लेना चाहिये.. ।
मिट्टी ओर जमीन से बराबर संपर्क बनाये रखना चाहिये ।
रोगी महिलाओ को 1 माह के भीतर ही अपने स्वास्थ्य में लाभ महसूस होने लगेगा ।
भारत भूषण शर्मा
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